धाकड़ फिल्म समीक्षा
लव-स्टोरी, कॉमेडी, संस्पेंस हो या एक्शन.. किसी भी फिल्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है कहानी। धाकड़ में यही कमी खलती है। यहां कंंगना रनौत से बैक टू बैक एक्शन सीन्स को खूब देखने को मिलेंगे, लेकिन कहानी के नाम पर फिल्म बेहरमी से ठगती है। एक्शन फिल्म के नाम पर गन्स चलाने और गाड़ियां उड़ाने तक तो ठीक था, लेकिन जब तक पटकथा में दम ना हो, सभी बेकार जाते हैं।
धाकड़ कहानी है एक प्रशिक्षित और खतरनाक एजेंट अग्नि की, जिसे एक अंतरराष्ट्रीय मानव और हथियारों के तस्कर रुद्रवीर को खत्म करने का एक मिशन सौंपा गया है, जो दस साल से रडार से दूर है। क्या अग्नि इस मिशन में सफल हो पाएगी? यही बनाती है आगे की कहानी।
फिल्म शुरु होती है ड्रैगनफ्लाई उर्फ़ एजेंट अग्नि के एक लंबे धमाकेदार एक्शन सीन से। जहां वह अपनी जान पर खेलकर बाल तस्करी के एक समूह से कुछ बच्चों को बचाती है। साथ ही अग्नि के हाथों लगती है एक पेनड्राइव, जिसमें दी जानकारी उसे एशिया के सबसे बड़े बाल तस्कर समूह के मुखिया से जोड़ता है, जो है रूद्रवीर। बच्चों को बहला कर, सरकार के खिलाफ नफरत भरकर रूद्रवीर और उसकी साथी रोहिणी एक साम्राज्य खड़ा करते हैं। कोयले की खदानों को हथियाने के अलावा वो दुनियाभर में बाल तस्करी का धंधा करते हैं। उनके साम्राज्य को खत्म करने का जिम्मा उठाती है अग्नि। लेकिन इस मिशन में उसे कई और सच्चाइयों से रूबरू होना पड़ता है, जो उसके विश्वास तक को हिलाकर रख देता है। क्या रूद्र को खत्म करने के इरादे में अग्नि सफल होगी? इसी के इर्द गिर्द घूमती है पूरी फिल्म।
कंगना रनौत, दिव्या दत्ता, अर्जुन रामपाल सरीखे कलाकार होने के बावजूद कोई किरदार आपके दिल में नहीं उतर पाता,कारण है फिल्म की कहानी। फिल्म का लेखन इतना कमज़ोर है कि सभी किरदार अपने आप में कहीं गुम नजर आते हैं।
निर्देशक- रजनीश घई
कलाकार- कंगना रनौत, अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता
रेटिंग – 2.5/5
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